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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग : 26 
कच की विनयशीलता, साहस और वाकपटुता ने ब्रहस्पति को बहुत प्रभावित किया । बच्चों पर अपने माता पिता का ध्यान जाता ही नहीं है । ब्रहस्पति के 17 बच्चे थे तो ध्यान कैसे जाता ? आपस में लड़ भिड़ कर बड़े हो जाते हैं बच्चे । माता पिता तो उनके जीवन यापन की व्यवस्था करने में ही व्यस्त रहते हैं । उनमें क्या विशेषताऐं हैं, क्या कमियां हैं, इस ओर देखने के लिए समय ही नहीं होता है उनके पास । कुछ विशेष घटनाऐं जब उनका ध्यान आकृष्ट करती हैं तब उन्हें उनके विशिष्ट गुणों का भान होता है । कच के साथ ऐसा ही कुछ हुआ था । यदि दुर्वासा ऋषि से कच कन्दुक लेकर नहीं आता तो उसकी योग्यताओं से जगत परिचित नहीं हो पाता 

ब्रहस्पति का सारा ध्यान अपने सबसे छोटे पुत्र कच पर केन्द्रित हो गया था । मृत संजीवनी विद्या सीखने के लिए वह सर्वाधिक योग्य व्यक्ति लगा था ब्रहस्पति को । "माना कि शुक्राचार्य का स्वभाव थोड़ा उग्र है पर कच की विनयशीलता उस पर ठंडे जल का कार्य कर देगी । कच कुशाग्र है इसलिए वह बहुत कम समय में भी बहुत कुछ सीखने की क्षमता रखता है । परिश्रमी है इसलिए गुरू की आज्ञा का पालन करने में समर्थ है । और विशेष बात यह है कि उसके पास वाक् चातुर्य है इसलिए वह किसी को भी तुरंत प्रभावित करने में सफल हो जाता है । जब उसने सबसे क्रोधी ऋषि दुर्वासा को प्रसन्न कर दिया तो उसके लिए कोई भी कृत्य दुष्कर नहीं है" । ऐसा सोचकर गुरू ब्रहस्पति के मन को बहुत शांति मिली । बहुत समय से अनुत्तरित प्रश्न का आज उत्तर मिल गया था उन्हें । मृत संजीवनी विद्या सीखने वाला एक योग्य छात्र मिल गया था उन्हें । जब किसी दुष्कर कार्य के लिए एक योग्य व्यक्ति मिल जाता है तो समझ लेना चाहिए कि वह दुष्कर कार्य अब दुष्कर नहीं रह गया है । 

ब्रहस्पति ने कच को अपने पास बुलाया और कहा "तुम्हारी योग्यता से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं वत्स ! अब मुझे विश्वास हो गया है कि देवताओं के गुरू पद के लिए एक योग्य व्यक्ति का प्रादुर्भाव हो चुका है । तुम मेरे यश की पताका को और ऊंचा लेकर के जाओगे पुत्र । दुर्वासा ऋषि से कन्दुक लाकर तुमने यह सिद्ध कर दिया है कि तुम्हारे लिए कोई भी कार्य दुष्कर नहीं है । आज देवलोक भयंकर संकट में फंसा हुआ है । दैत्यों के गुरू शुक्राचार्य के पास मृत संजीवनी विद्या है जिससे वे दैत्यों को जीवित कर देते हैं । इस विद्या के कारण दैत्य उदण्ड और अभिमानी हो गये हैं । देवताओं के पास मृत संजीवनी जैसी कोई विद्या नहीं है इसलिए वे इन दैत्यों से भयभीत रहते हैं । पूरा देवलोक भय के महासागर में समाया हुआ है । इस भय के वातावरण से देवलोक को बाहर निकालने का गुरूतर कार्य तुम्हारे कंधों पर डालने जा रहा हूं पुत्र । मैंने तुम्हारा चयन बहुत सोच समझ कर किया है वत्स । मुझे विश्वास है कि तुम इस गुरूतर कार्य को अपनी बुद्धामत्ता, विनम्रता और कार्यकुशलता से भली भांति संपन्न कर अपना नाम महान लोगों की सूची में लिखवा सकोगे । तुम्हें यहां से दैत्य लोक में जाना है और गुरू शुक्राचार्य का शिष्य बनकर "नीतिशास्त्र" का अध्ययन करना है । इसी बीच साम, दान, दण्ड, भेद के द्वारा मृत संजीवनी विद्या को सीखना है । तुम्हारा मुख्य उद्देश्य मृत संजीवनी विद्या सीखना है न कि नीतिशास्त्र पढना । शुक्राचार्य और दैत्यों से स्वयं की रक्षा करते हुए यह गुरूतर कार्य तुम्हें करना है वत्स । इस संबंध में तुम्हें कुछ कहना हो तो निसंकोच कह सकते हो" । 

कच बड़े ध्यान से अपने पिता ब्रहस्पति की बात सुनकर रहा था । उसने कहा "आपने इस गुरूतर कार्य के लिए मेरा चयन किया, इस बात का मुझे गर्व है तात श्री । मुझे विश्वास है कि मैं आपके और माता के आशीर्वाद से यह गुरूतर कार्य सफलता पूर्वक संपन्न कर सकूंगा । आपके आदेश का पालन होगा तात" । 

कच की बात सुनकर ब्रहस्पति गदगद हो गये । उन्होंने कच का मस्तक सूंघा और उसे अपने सीने से लगाकर उसे अनेक आशीर्वाद दे दिये । "जाओ वत्स, अपनी माता से अनुमति ले लो और यात्रा की तैयारी प्रारंभ कर लो" ब्रहस्पति ने कहा । 

कच अपनी माता ममता के पास अनुमति के लिए गया और इस प्रकार कहा "माते , आज आपके दूध का कर्ज चुकाने का अवसर आ गया है । मृत संजीवनी विद्या के कारण दैत्यों का आतंक बहुत बढ़ गया है । देवता इधर उधर लुकते छिपते फिर रहे हैं । उनकी शांति भंग हो गई है । जीना बहुत मुश्किल हो गया है उनका । ऐसे में मृत संजीवनी विद्या सीखना बहुत आवश्यक है माता । मुझे गर्व है कि तात श्री ने इस गुरूतर कार्य का दायित्व मुझे सौंपा है । मैं आपके पास अनुमति लेने के लिए आया हूं माते । मुझे दैत्य गुरू शुक्राचार्य के यहां जाकर मृत संजीवनी विद्या सीखने के लिए अपना आशीर्वाद दो माते । साथ ही यह भी आशीर्वाद दो कि मैं यह कार्य अतिशीघ्र संपन्न कर के शीघ्र ही वापस आकर आपके चरणों की सेवा करूं" । कच अपनी माता के चरणों में गिर गया । 

ममता को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था । कच के मुंह से उसके जाने की बात सुनकर वह अवाक् रह गई । दैत्य लोक में जाकर दैत्यों के बीच रहकर चोरी से मृत संजीवनी विद्या सीखना कोई बच्चों का खेल है क्या ? वह सोचने लगी । इसके लिए स्वामी ने कच को ही क्यों चुना है ? कच तो सबसे छोटा है । और भी तो बड़े बड़े भाई बैठे हैं इसके । उन्हें क्यों नहीं चुना नाथ ने" ? ऐसा सोचकर ममता आवेश में आ गई । उसने कच की बांह पकड़ी और उसे लेकर ब्रहस्पति के सम्मुख आकर खड़ी हो गई । 

"क्या बात है प्रिये ? कुछ आवेश में लग रही हो । कोई विशेष बात है क्या" ? 
"हां, विशेष बात ही है । आप कच को कहां भेज रहे हैं" ? वह उत्तेजित होकर बोली 
"मेरे गुरु बंधु शुक्राचार्य के पास और कहां" ? 
"क्या शुक्राचार्य आपके गुरु भाई हैं" ? 
"हां, हम दोनों तात अंगिरा के शिष्य थे" । ब्रहस्पति ने ममता को शांत करने का नायाब तरीका ढूंढ लिया था । 
"होंगे आपके गुरु भाई , पर आजकल तो वे दैत्यों के गुरू हैं । दैत्यों के बीच मेरे अबोध पुत्र को क्यों भेज रहे हो ? ये तो सबसे छोटा है । इससे बड़े बड़े तो और भी हैं ना यहां पर । यदि भेजना अनिवार्य ही है तो उन्हें भेज दो" ममता सिंहनी की तरह दहाड़ी । 

ममता का रौद्र रूप देखकर ब्रहस्पति सहम गए लेकिन उन्होंने धैर्य बनाए रखा और सोच समझकर कहा "बुद्धिमत्ता उम्र की सेविका नहीं होती है प्रिये । गणेश जी ने परीक्षा उत्तीर्ण कर के यह सिद्ध कर दिया था कि वे कार्तिकेय से छोटे होने के बावजूद उनसे अधिक बुद्धिमान हैं इसलिए उन्हें ही प्रथम पूज्य बनने का गौरव प्राप्त हुआ है । कच बुद्धिमान है, साहसी है, धैर्यवान है, विनीत है , क्षमाशील है, वीर है, कुशाग्र है । और सबसे बड़ी बात यह है कि वह वाक पटु है । तर्क वितर्क करने में प्रवीण है । इतनी सारी योग्याताऐं हैं इसमें कि उन्हें गिनाने में पूरा दिन लग जाएगा । मैंने उसका चयन ऐसे ही थोड़े किया है ? उसकी योग्यता को देखकर ही उसका चयन किया गया है । उसे एक ऐसा कार्य करने के लिए चुना है जो उसे अमर कर देगा । फिर भी यदि आप नहीं चाहती हैं कि उसका नाम सफल लोगों की सूची में सम्मिलित हो तो कोई बात नहीं, मैं किसी और को भेज दूंगा । तुम अपने लाल को अपने आंचल में ही छुपाकर रख लेना" । ब्रहस्पति ने कृत्रिम आवेश में कहा । 

ब्रहस्पति की एक एक बात ममता के हृदय में उतरती चली गई । ब्रहस्पति के मुख से कच की इतनी प्रशंसा ममता ने कभी नहीं सुनी थी । आज सुनी तो वह गर्व से भर गई । उसने कहा "यदि ऐसी बात है तो इस गुरुतर कार्य के लिए कच ही जायेगा और देवलोक के सुनहरे इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखवाएगा । फिर वह कच की ओर मुड़ी और कहा "तुम अवश्य जाओ पुत्र । तात की आज्ञा का पालन करो । मृत संजीवनी विद्या सीखकर देवलोक को निर्भय कर दो पुत्र । मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारा कवच बनकर तुम्हारी रक्षा करेगा" । ममता ने अपने दोनों हाथ कच के सिर पर रख दिये और उसे अपने सीने से लगा लिया । 

श्री हरि 
25.5.23 

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5 Comments

Harsh jain

04-Jun-2023 02:01 PM

Nice

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Alka jain

04-Jun-2023 12:49 PM

V nice 👍🏼

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वानी

01-Jun-2023 07:01 AM

Nice

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